RCB की जीत के बाद अचानक लाखों फैंस चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर जमा हो गए। जबकि स्टेडियम की क्षमता करीब 35,000 थी, वहां करीब 2-3 लाख लोग पहुंच गए। न मुफ्त पास बांटने की जिम्मेदारी सही तरीके से निभाई गई, न भीड़ को मैनेज करने के लिए पर्याप्त पुलिस बल मौजूद था। यह पूरी तरह से एक प्रशासनिक विफलता थी।
आयोजन को लेकर न तो शहर की पुलिस ने समय से तैयारी की, न ही आयोजकों ने यह अनुमान लगाया कि टीम की पहली जीत के बाद भीड़ कितनी विशाल हो सकती है। IPL का फाइनल मैच देर रात खत्म हुआ और अगली सुबह ही विक्ट्री परेड रख दी गई, जिससे समय पर योजना बनाना मुश्किल हो गया।
RCB ने सोशल मीडिया पर परेड की घोषणा की, और साथ ही निःशुल्क पास भी वेबसाइट पर उपलब्ध कराए। इसके चलते बहुत से लोग सिर्फ "सेलिब्रेशन" देखने स्टेडियम की ओर दौड़े। किसी भी तरह की भीड़ नियंत्रण की नीति, प्रवेश और निकासी व्यवस्था या मेडिकल बैकअप की तैयारी नहीं थी।
घटना के बाद #BengaluruStampede, #ChinnaswamyStadium और #ViratKohli जैसे हैशटैग सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगे। अधिकांश लोगों ने RCB, आयोजकों और प्रशासन की निंदा की। कई यूजर्स ने यह भी कहा कि एक खेल की जीत पर इतने पागलपन की क्या ज़रूरत थी, जहां इंसानी जानें इतनी सस्ती हो जाएं?हम आखिर क्रिकेटरों के पीछे इतना क्यों भागते हैं? क्या इससे देश का कोई भला हो रहा है?”RCB को ट्रॉफी मिल गई, लेकिन क्या उसके साथ ज़िम्मेदारी नहीं मिलनी चाहिए थी?”जैसे ही भीड़ बढ़ती गई, पुलिस या आयोजकों की कोई पहल नज़र नहीं आई।”
यह हादसा केवल एक सुरक्षा चूक नहीं है — यह एक बड़ा सामाजिक सवाल भी खड़ा करता है। क्या हम अपने उत्सवों और भावनाओं में इतना बह जाते हैं कि इंसानी जानों की कीमत भी भूल जाते हैं?क्यों हम सितारों (चाहे वो क्रिकेटर हों, नेता हों या अभिनेता) के पीछे इतनी दीवानगी दिखाते हैं?क्या हम अपनी प्राथमिकताओं को भूल चुके हैं?क्या हमारा समाज जिम्मेदार नागरिकों का है, या केवल अंधभक्तों का?यह घटना बताती है कि उत्सव और समाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन होना बेहद जरूरी है। जब किसी खिलाड़ी की जीत पर इतनी बड़ी भीड़ जमा हो सकती है, तो क्या हम अपने सामाजिक मुद्दों — जैसे बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य — के लिए भी इतनी ही एकजुटता दिखाते हैं?