भारत एक ऐसा देश है जहां जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा युवाओं से बना है। लेकिन हाल ही में एक परेशान करने वाली प्रवृत्ति देखने को मिल रही है — बच्चों में मोटापा यानी Childhood Obesity का बढ़ता स्तर। यह समस्या सिर्फ स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी असर डाल रही है।
हाल ही में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) द्वारा एक व्यापक अध्ययन किया गया, जिसमें भारत के 1 लाख से अधिक बच्चों के स्वास्थ्य डेटा का विश्लेषण किया गया। इस अध्ययन के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:भारत में 5% से 15% बच्चों में अधिक वजन या मोटापा पाया गया है।यह आंकड़ा हर राज्य और शहरी/ग्रामीण क्षेत्रों के अनुसार थोड़ा बहुत भिन्न हो सकता है, लेकिन चिंता का विषय यह है कि यह प्रतिशत तेजी से बढ़ रहा है।
बच्चों का अधिकतर समय मोबाइल, लैपटॉप और टीवी स्क्रीन के सामने बीत रहा है।खेलने-कूदने की जगह और समय दोनों कम हो गए हैं।शारीरिक गतिविधि की कमी से कैलोरी बर्न नहीं होती और वजन तेजी से बढ़ता है।
जंक फूड (पिज्जा, बर्गर, चिप्स) और मीठे ड्रिंक्स का बढ़ता चलन।घरों में भी संतुलित आहार के बजाय जल्दी बनने वाले प्रोसेस्ड फूड पर निर्भरता बढ़ रही है।स्कूल कैन्टीन्स और बाजारों में उपलब्ध खाने की चीजें ज्यादातर अनहेल्दी होती हैं।
शहरी क्षेत्रों में बच्चों को खेलने के लिए खुली जगहें कम हैं।माता-पिता के पास बच्चों की दिनचर्या पर ध्यान देने का समय कम होता है।नींद की कमी, तनाव और शैक्षणिक दबाव भी अप्रत्यक्ष रूप से वजन बढ़ने में योगदान देते हैं।
बचपन में मोटापे का असर सिर्फ उस उम्र तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह पूरे जीवन पर प्रभाव डालता
मोटापे की समस्या से निपटने के लिए व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और सरकारी स्तर पर कदम उठाने होंगे। नीचे कुछ प्रमुख समाधान दिए गए हैं:
बच्चों को हरी सब्जियाँ, फल, दाल, दूध, अंडे जैसे संपूर्ण आहार देना चाहिए।शक्कर और वसा से भरपूर खाद्य पदार्थों को सीमित करना चाहिए।बच्चों को घर का ताजा बना खाना देने की आदत डालें।