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भारत का जेट इंजन मिशन: कावेरी प्रोजेक्ट की कहानी और राफेल से इसका जुड़ाव

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KhabriKida  @khabrikida
Created At - 2025-05-28

कावेरी इंजन: भारत का स्वदेशी जेट इंजन मिशन और राफेल कनेक्शन की पूरी कहानी

भारत कई वर्षों से आत्मनिर्भर रक्षा तकनीक की दिशा में अग्रसर है, और 'कावेरी इंजन प्रोजेक्ट' इसी सफर का एक अहम पड़ाव है। यह प्रोजेक्ट 1980 के दशक में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य था भारत में एक पूर्णत: स्वदेशी फाइटर जेट इंजन का विकास करना। लेकिन तकनीकी बाधाओं, संसाधनों की कमी और सीमित फंडिंग के चलते यह मिशन वर्षों तक ठहराव में रहा। अब, बदलते सुरक्षा हालातों और राफेल डील के बाद इस इंजन की चर्चा एक बार फिर जोरों पर है।

 प्रोजेक्ट की शुरुआत और मूल उद्देश्य

कावेरी इंजन प्रोजेक्ट को आधिकारिक तौर पर 1989 में मंजूरी मिली थी, लेकिन इस पर काम 1986 से ही गैस टरबाइन रिसर्च इस्टैब्लिशमेंट (GTRE), DRDO की एक इकाई द्वारा शुरू कर दिया गया था। इसका उद्देश्य था एक ऐसा इंजन तैयार करना जो हल्के लड़ाकू विमान (LCA) तेजस को शक्ति प्रदान कर सके।

इस इंजन की डिजाइन थ्रस्ट क्षमता करीब 81 से 83 kN रखी गई थी, ताकि यह सुपरसोनिक स्पीड और हाई एल्टीट्यूड प्रदर्शन के मानकों को पूरा कर सके।

तकनीकी चुनौतियाँ और प्रोजेक्ट में देरी

कावेरी इंजन को विकसित करते समय वैज्ञानिकों को कई गंभीर तकनीकी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा:

  • उच्च तापमान पर मेटल एलॉय की स्थिरता बनाए रखना

  • सुपरसोनिक थ्रस्ट के लिए आवश्यक कंबशन और टर्बाइन तकनीक

  • इंजन का वज़न नियंत्रण में रखना

  • लंबे समय तक परीक्षण में खरे उतरने की चुनौती

इनके अलावा, प्रोजेक्ट को फंडिंग की कमी, विदेशी विशेषज्ञता की अनुपलब्धता और वैश्विक तकनीकी प्रतिबंधों (जैसे MTCR) के कारण कई बार रुकना पड़ा।

 2008 में, यह निर्णय लिया गया कि कावेरी इंजन तेजस प्रोजेक्ट के लिए उपयुक्त नहीं है, और इसे उस प्रोग्राम से हटा दिया गया।

राफेल डील से कनेक्शन क्या है?

2016 में भारत और फ्रांस के बीच 36 राफेल फाइटर जेट्स की डील हुई, जिसमें एक महत्वपूर्ण शर्त थी — 50% ऑफसेट क्लॉज। इसका मतलब यह था कि फ्रेंच कंपनियों को डील की लागत का आधा भारत में निवेश करना होगा।

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