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व्रत-त्योहारों की सूची, देवशयनी एकादशी से गुरु पूर्णिमा तक जानें आषाढ़ मास का महत्व

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Created At - 2025-06-12

आषाढ़ माह 2025: देवशयनी एकादशी से लेकर गुरु पूर्णिमा तक – व्रत, पर्व और पुण्य का समय

हिंदू पंचांग में आषाढ़ मास (2025 में 12 जून से 10 जुलाई तक) एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक और आध्यात्मिक समय माना जाता है। यह चौथा माह है जो ज्येष्ठ मास के बाद और सावन के पहले आता है। इसे “संधिकाल” भी कहा जाता है, क्योंकि यह ग्रीष्म और वर्षा ऋतु के बीच का महीना होता है।

इस महीने में देवताओं के विश्राम का समय शुरू होता है, वर्षा ऋतु का आरंभ होता है, और साथ ही गुरु-शिष्य परंपरा का महोत्सव "गुरु पूर्णिमा" भी इसी में आता है।

आषाढ़ मास का धार्मिक महत्व

चातुर्मास की शुरुआत –
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को "देवशयनी एकादशी" कहते हैं। इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं, जिसे चातुर्मास कहा जाता है। इस अवधि में कोई भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि नहीं किए जाते।

ध्यान और साधना का समय –
इस महीने को ध्यान, जप, तप और उपवास के लिए आदर्श माना गया है। आषाढ़ से कार्तिक तक के चार महीने आत्मनियंत्रण और अध्यात्म के लिए बेहद उत्तम हैं।

गुरु का पूजन विशेष फलदायक –
गुरु पूर्णिमा इसी मास में आती है और यह दिन गुरु की आराधना का श्रेष्ठ समय होता है। वेदव्यास जी का जन्म भी इसी दिन हुआ था, इसीलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं।

देवशयनी एकादशी (6 जुलाई 2025)

भगवान विष्णु के शयन की शुरुआतइस दिन व्रत रहकर विष्णु सहस्रनाम, भगवद गीता पाठ और दान का महत्व है।

आषाढ़ में किनकी पूजा करें?

भगवान विष्णु – योगनिद्रा के लिए प्रार्थना और ध्यान करें।गुरु – आत्मिक प्रगति के लिए गुरु का सान्निध्य और आशीर्वाद अत्यंत आवश्यक है।देवी दुर्गा और शक्ति – नकारात्मकता को दूर करने के लिए।भगवान शिव – चंद्रमा के प्रभाव के कारण मानसिक शांति के लिए।

उपवास, भक्ति और ध्यान का पालन करें।जल का दान करें और पेड़ों की सेवा करें।तुलसी, पीपल, बेल आदि की पूजा करें।गुरु या माता-पिता से आशीर्वाद लें।

 **क्या न करें:**लहसुन, प्याज, मांस-मदिरा, अंडा आदि से परहेज़ करें।

विवाह या गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य न करें।किसी का अपमान, झूठ बोलना या वाणी से किसी को आहत करना वर्जित है।बारिश में भीगने या अस्वच्छता से संक्रमण की आशंका रहती है, सावधानी रखें।

सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण

आषाढ़ मास में वर्षा प्रारंभ होने से वातावरण शुद्ध होता है, धरती को नया जीवन मिलता है और प्रकृति सजती है। ऐसे में मनुष्य के भीतर भी एक नई ऊर्जा और संकल्प का संचार होता है। यह महीना आत्मशुद्धि, आत्मचिंतन, और सच्चे भक्ति भाव को जगाने का समय है।

आधुनिक जीवन में इसका महत्व

मानसिक शांति और तनाव से मुक्ति के लिए योग, ध्यान और अध्यात्म की ओर रुझान बढ़ाना चाहिए।जीवन की आपाधापी में विराम लेकर कुछ समय खुद के लिए निकालें – यही आषाढ़ मास का संदेश है।

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