पाकिस्तान की आतंक समर्थित गतिविधियों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उजागर करने की रणनीति के तहत भारत सरकार ने हाल ही में सांसदों का एक विशेष प्रतिनिधिमंडल तैयार किया है। इस डेलिगेशन को विभिन्न देशों में भेजकर भारत यह दिखाना चाहता है कि पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़ बना हुआ है और वैश्विक शांति के लिए खतरा बना हुआ है। इस प्रयास के तहत सरकार ने विभिन्न राजनीतिक दलों से नेताओं को नामित किया था, जिनमें तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सांसद और पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान का नाम भी शामिल किया गया।
हालांकि, अब यह खबर सामने आई है कि यूसुफ पठान इस डेलिगेशन का हिस्सा नहीं बनेंगे। उन्होंने भारत सरकार को सूचित कर दिया है कि वह इस दौरे के लिए "उपलब्ध नहीं हैं"। सूत्रों की मानें तो यूसुफ पठान ने निजी कारणों के चलते इस डेलिगेशन में शामिल होने से इनकार किया है, लेकिन इससे राजनीतिक हलकों में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है।
इस घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों का दावा है कि यूसुफ पठान का नाम सरकार द्वारा सीधे शामिल किया गया था, और उनकी पार्टी टीएमसी से इस बारे में कोई पूर्व सहमति या चर्चा नहीं की गई थी। पार्टी नेताओं का कहना है कि यह एकतरफा फैसला था, जिससे असहमति स्वाभाविक थी। यही वजह है कि यूसुफ पठान ने खुद को इस दौरे से अलग कर लिया है।
भारत सरकार ने हाल ही में पाकिस्तान के आतंकी शिविरों पर जवाबी कार्रवाई करते हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को अंजाम दिया। इसके बाद अब सरकार कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान को घेरने की तैयारी में है। इस रणनीति के तहत सात देशों में भारतीय सांसदों की टीमें भेजी जानी हैं, जो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की हकीकत को दुनिया के सामने रखेंगी। ये टीमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और जापान जैसे देशों में भारत का पक्ष रखेंगी।
यूसुफ पठान के डेलिगेशन से हटने को विपक्षी दलों ने एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया है कि मोदी सरकार विपक्षी दलों से बिना बातचीत किए निर्णय ले रही है। कांग्रेस और टीएमसी जैसे दलों का आरोप है कि सरकार इस गंभीर कूटनीतिक पहल को भी राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही है। इससे न केवल विपक्ष की भागीदारी प्रभावित हो रही है, बल्कि राष्ट्रीय एकता का संदेश भी कमजोर पड़ सकता है।